किसान आंदोलन: सुप्रीम कोर्ट के कमेटी बनाने पर किसानों ने क्या कहा?
बुधवार, 13 जनवरी, 2021 आई बी टी एन खबर ब्यूरो
भारत में दिल्ली के बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों का कहना है कि वो सुप्रीम कोर्ट की पहल का स्वागत तो करते हैं मगर उनका आरोप है कि जो कमिटी किसानों की मांगों को लेकर बनाई गई है वो सरकार के ही पक्ष में काम करेगी।
किसानों के संगठनों के प्रतिनिधि और भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि जिन चार लोगों की कमिटी बनाई गई है उनपर किसानों को भरोसा इसलिए नहीं है क्योंकि इनमें से कुछ एक ने कृषि बिल को लेकर सरकार का खुलेआम समर्थन किया है।
सुप्रीम कोर्ट में चली कार्यवाही के बाद दिल्ली की सरहद से फ़ोन पर बात करते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि किसान अपना आंदोलन जारी रखेंगे और अपने आंदोलन के स्थल को भी नहीं बदलेंगे।
उनका कहना था, ''हम सुप्रीम कोर्ट का आभार व्यक्त करते हैं कि माननीय मुख्य न्यायाधीश और बेंच के दूसरे न्यायाधीशों ने कम से कम आंदोलन कर रहे किसानों की मुश्किलों को तो समझा। सर्वोच्च अदालत ने आंदोलन करने के अधिकार का भी बचाव किया है। ये बहुत बड़ी बात है।''
किसान आंदोलन के 49 दिन बाद और आठ चरण की वार्ता के बावजूद केंद्र सरकार किसानों को मनाने में नाकाम रही है।
दिल्ली की सीमाओं को घेर कर बैठे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान तीनों क़ानूनों की वापसी से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि वो प्रदर्शन स्थलों को तभी छोड़ेंगे, जब सरकार तीनों क़ानून वापस ले लेगी।
मोदी सरकार किसानों के उत्पादों की बिक्री, क़ीमत और भण्डारण को लेकर नये क़ानून लायी है। मोदी सरकार का दावा है कि इन क़ानूनों से किसानों की स्थिति सुधरेगी।
मंगलवार, 12 जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर की गईं कुछ याचिकाओं पर सुनवाई के बाद तीनों क़ानूनों पर अस्थायी रोक लगा दी है। अदालत में आगे क्या हो सकता है, इस बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है।
लेकिन सवाल है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी आख़िर कैसे सबसे ज़्यादा प्रभावित कहे जा रहे पंजाब और हरियाणा के किसानों का मूड नहीं समझ पाये?
क्या गड़बड़ पंजाब की एक सहयोगी पार्टी (अकाली दल) की वजह से हुई जिसने पहले इन क़ानूनों का समर्थन किया था, पर बाद में इन क़ानूनों को किसान-विरोधी बताते हुए सरकार से नाता तोड़ लिया।
और क्या मोदी सरकार को यह लगा था कि इन क़ानूनों के आने से उनके लोकप्रिय समर्थन में किसी भी तरह का नुक़सान नहीं होगा?